बुधवार व्रत कथा (Budhwar Vrat Katha) : सनातन हिंदू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है । श्री गणेश जी की आराधना से बुद्धि का विकास होता है एवं जीवन में समृद्धि आती है । क्योंकि जहाँ गणेश जी होते हैं वहां माता लक्ष्मी भी उपस्थित होती हैं । ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति बुधवार का व्रत रखता है उसके जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि सदा बनी रहती है ।

बुधवार व्रत कथा (Budhwar Vrat Katha in Hindi)
एक समय की बात है, समतापुर नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति निवास करता था। उसका विवाह पास के ही बलरामपुर नगर की संगीता नामक सुंदर और सुशील कन्या से हुआ था।
एक दिन मधुसूदन अपनी पत्नी को ससुराल से वापस लाने के लिए बलरामपुर पहुँचा। वहाँ पहुँचते ही वह संगीता को उसी दिन विदा कराने की जिद करने लगा। लेकिन उस दिन बुधवार था। संगीता के परिवार वालों ने उसे समझाया कि बुधवार के दिन यात्रा करना अशुभ माना जाता है। बावजूद इसके, मधुसूदन अपनी जिद पर अड़ा रहा, और अंततः संगीता के घरवालों को उसे उसी दिन विदा करना पड़ा।
मधुसूदन और संगीता बैलगाड़ी में सवार होकर अपने घर की ओर रवाना हुए। कुछ दूर चलने के बाद अचानक बैलगाड़ी का एक पहिया टूट गया। मजबूर होकर दोनों गाड़ी से उतरकर पैदल चलने लगे। चलते-चलते संगीता को तेज प्यास लगी, तो मधुसूदन पानी लाने के लिए पास के किसी स्थान की ओर चला गया।
जब वह पानी लेकर वापस आया तो हैरान रह गया। उसने देखा कि उसकी पत्नी के पास बिल्कुल उसी के जैसा दिखने वाला एक व्यक्ति बैठा था। मधुसूदन ने नजदीक जाकर उससे पूछा, “तुम कौन हो?” उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “मैं मधुसूदन हूं और यह संगीता मेरा पत्नी है।” यह सुनकर मधुसूदन क्रोधित हो गया और बोला, “यह झूठ है! असली मधुसूदन तो मैं हूं। मैं ही संगीता के लिए पानी लेने गया था।”
हमशक्ल ने पलटकर कहा कि वह तो संगीता को पानी पिलाकर आया है। इस पर दोनों के बीच असली मधुसूदन को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। उसी समय वहां से एक सिपाही गुजरा। सिपाही ने संगीता से पूछा कि उसका असली पति कौन है, लेकिन संगीता खुद भी भ्रमित हो गई और कुछ नहीं कह पाई।
फिर दोनों को राजा के दरबार में पेश किया गया। राजा ने पूरी बात सुनी और असमंजस में आकर दोनों को कारागार में डालने का आदेश दे दिया।
जेल में बंद मधुसूदन बहुत घबराया और उसने भगवान बुधदेव से करुणा पूर्वक क्षमा याचना की। तभी आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि बुधवार के दिन यात्रा न करने की सलाह को अनदेखा करने के कारण भगवान बुधदेव क्रोधित हुए और यह संकट उत्पन्न हुआ।
मधुसूदन ने भगवान से सच्चे मन से क्षमा मांगी और वचन दिया कि वह आगे से कभी बुधवार को यात्रा नहीं करेगा तथा इस दिन व्रत भी रखेगा। उसकी प्रार्थना सुनकर बुधदेव का क्रोध शांत हो गया। उसी समय दरबार में खड़ा उसका हमशक्ल भी अदृश्य हो गया।
राजा ने मधुसूदन और संगीता को सम्मानपूर्वक विदा कर दिया। जब वे राजमहल से बाहर निकले तो टूटी हुई बैलगाड़ी भी सही-सलामत मिली। फिर दोनों प्रसन्न होकर अपने नगर लौट आए।
उस दिन के बाद से मधुसूदन और संगीता ने हर बुधवार व्रत रखना शुरू कर दिया। उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आ गयी और सभी कार्यों में उन्नति होने लगी।
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