गरुडगमन तव चरणकमलमिह मनसि लसतु मम नित्यम्
मनसि लसतु मम नित्यम् ।
मम तापमपाकुरु देव, मम पापमपाकुरु देव ॥ ध्रु.॥
जलजनयन विधिनमुचिहरणमुख विबुधविनुत-पदपद्म
मम तापमपाकुरु देव, मम पापमपाकुरु देव ॥ 1॥
भुजगशयन भव मदनजनक मम जननमरण-भयहारिन्
मम तापमपाकुरु देव, मम पापमपाकुरु देव ॥ 2॥
शङ्खचक्रधर दुष्टदैत्यहर सर्वलोक-शरण
मम तापमपाकुरु देव, मम पापमपाकुरु देव ॥ 3॥
अगणित-गुणगण अशरणशरणद विदलित-सुररिपुजाल
मम तापमपाकुरु देव, मम पापमपाकुरु देव ॥ 4॥
भक्तवर्यमिह भूरिकरुणया पाहि भारतीतीर्थम्
मम तापमपाकुरु देव, मम पापमपाकुरु देव ॥ 5॥
इति जगद्गुरु शृङ्गेरी पीठाधिपति भारतीतीर्थस्वामिना विरचितं महाविष्णुस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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