Thu. Mar 13th, 2025

तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa)

।। दोहा ।।

श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय ।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय ।।

।। चौपाई ।।

नमो नमो तुलसी महारानी । महिमा अमित न जाए बखानी ।।

दियो विष्णु तुमको सनमाना । जग में छायो सुयश महाना ।।

विष्णु प्रिया जय जयति भवानि । तिहूं लोक की हो सुखखानी ।।

भगवत पूजा कर जो कोई । बिना तुम्हारे सफल न होई ।।

जिन घर तव नहिं होय निवासा । उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा ।।

करे सदा जो तव नित सुमिरन । तेहिके काज होय सब पूरन ।।

कातिक मास महात्म तुम्हारा । ताको जानत सब संसारा ।।

तव पूजन जो करैं कुंवारी । पावै सुन्दर वर सुकुमारी ।।

कर जो पूजा नितप्रीति नारी । सुख सम्पत्ति से होय सुखारी ।।

वृद्धा नारी करै जो पूजन । मिले भक्ति होवै पुलकित मन ।।

श्रद्धा से पूजै जो कोई । भवनिधि से तर जावै सोई ।।

कथा भागवत यज्ञ करावै । तुम बिन नहीं सफलता पावै ।।

छायो तब प्रताप जगभारी । ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी ।।

तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में । सकल काज सिधि होवै क्षण में ।।

औषधि रूप आप हो माता । सब जग में तव यश विख्याता ।।

देव रिषी मुनि और तपधारी । करत सदा तव जय जयकारी ।।

वेद पुरानन तव यश गाया । महिमा अगम पार नहिं पाया ।।

नमो नमो जै जै सुखकारनि । नमो नमो जै दुखनिवारनि ।।

नमो नमो सुखसम्पत्ति देनी । नमो नमो अघ काटन छेनी ।।

नमो नमो भक्तन दु:ख हरनी । नमो नमो दुष्टन मद छेनी ।।

नमो नमो भव पार उतारनि । नमो नमो परलोक सुधारनि ।।

नमो नमो निज भक्त उबारनि । नमो नमो जनकाज संवारनि ।।

नमो नमो जय कुमति नशावनि । नमो नमो सब सुख उपजावनि ।।

जयति जयति जय तुलसीमाई । ध्याऊं तुमको शीश नवाई ।।

निजजन जानि मोहि अपनाओ । बिगड़े कारज आप बनाओ ।।

करूं विनय मैं मात तुम्हारी । पूरण आशा करहु हमारी ।।

शरण चरण कर जोरि मनाऊं । निशदिन तेरे ही गुण गाऊं ।।

करहु मात यह अब मोपर दया । निर्मल होय सकल ममकाया ।।

मांगू मात यह बर दीजै । सकल मनोरथ पूर्ण कीजै ।।

जानूं नहिं कुछ नेम अचारा । छमहु मात अपराध हमारा ।।

बारह मास करै जो पूजा । ता सम जग में और न दूजा ।।

प्रथमहि गंगाजल मंगवावे । फिर सुंदर स्नान करावे ।।

चंदन अक्षत पुष्प चढ़ावे । धूप दीप नैवेद्य लगावे ।।

करे आचमन गंगा जल से । ध्यान करे हृदय निर्मल से ।

पाठ करे फिर चालीसा की । अस्तुति करे मात तुलसी की ।।

यह विधि पूजा करे हमेशा । ताके तन नहिं रहै क्लेशा ।।

करै मास कार्तिक का साधन । सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं ।।

है यह कथा महा सुखदाई । पढ़ै सुने सो भव तर जाई ।।

।। दोहा ।।

यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय ।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय ।।