बजरंग बाण (Bajrang Baan) की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी । यह हनुमान जी की स्तुति में लिखा गया है। इसका प्रभाव अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है । बजरंग बाण को “बाण” इसलिए कहते है क्योंकि यह हनुमान जी के “तीव्र अस्त्र” की भांति कार्य करता है। इसके पाठ का असर तुरंत होता है। यह विशेष रूप से उनके लिए उपयोगी है जो किसी कठिन परिस्थिति में फंसे हों ।
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Bajrang Baan | Bajrang Baan Lyrics
जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा । सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा॥
अछय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लछिमन प्रान के दाता । आतुर होय दुख करहु निपाता॥
जय गिरधर जय जय सुख सागर । सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
सत्य होऊ हरी सपथ पायके । रामदूत धरु मारू जायके ॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा । दुःख पावत जन केही अपराधा ॥
पूजा जप ताप नेम अचारा । नहीं जानत हौं दास तुम्हारा ॥
बन उपवन यम गिरी गृह माँही । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥
पाँय परौं कर जोरि मनावौं । एही अवसर अब कही गोहरावौं ॥
जय अंजनि कुमार बलवंता । संकर सुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर । अग्नि बैताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु तोहि सपथ राम की । राखउ नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै । राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा । दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा । सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन शरन कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई । पायँ परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ I सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिरि कौन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की । हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं । ताते भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय अरु जपै हमेसा । ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतिही कपि भजे, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल सुभ , सिद्ध करैं हनुमान ॥
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