Rudra Ashtakam | रुद्राष्टकम् 

रुद्राष्टकम् (Rudra Ashtakam) भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। यह स्तोत्र भगवान शिव के रौद्र (रुद्र) स्वरूप, उनकी शक्ति, शिवत्व, और करुणा का गुणगान करता है। यह रामचरितमानस में वर्णित है।

Rudra Ashtakam

नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं विभुंव्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पंनिरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयंगिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।

करालं महाकालकालं कृपालंगुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥2॥

तुषाराद्रिसङ्काशगौरं गभीरंमनोभूतकोटिप्रभाश्रीशरीरम्।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गालसद्भालबालेन्दुकण्ठे भुजङ्गा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालंप्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियंशङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भंपरेशमखण्डमजं भानुकोटिप्रकाशम्।

त्रयःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिंभजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी प्रसीदप्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दंभजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।

न तावत्सुखं शान्तिसन्तापनाशंप्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजांनतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।

जराजन्मदुःखौघतातप्यमानं प्रभोपाहि आपन्नमामीश शम्भो॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तंविप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्त्यातेषां शम्भुः प्रसीदति॥9॥

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