Govinda Ashtakam | गोविन्दाष्टकम्

परिचय :

गोविन्द अष्टकम् (Govinda Ashtakam) की रचना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यह अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण के गोविन्द स्वरूप की महिमा का गुणगान करता है। इसमें आठ श्लोक होते हैं, जिनमें श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं, उनकी करुणा, सौंदर्य और भक्ति का वर्णन किया गया है।

इस अष्टकम में भगवान गोविन्द की शरण में जाने से मिलने वाले दिव्य आनंद और मोक्ष की महिमा को दर्शाया गया है। इसे श्रद्धा और भक्ति भाव से पढ़ने से मन को शांति, आध्यात्मिक उन्नति और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

गोविन्द अष्टकम् (Govinda Ashtakam) का पाठ करने से जीवन में भक्ति, प्रेम और आत्मिक शुद्धता का संचार होता है, एवं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त होती है।

govinda ashtakam

गोविन्दाष्टकम् (Govinda Ashtakam lyrics)

सत्यं ज्ञानमनन्तं नित्यमनाकाशं परमाकाशं

गोष्ठप्राङ्गणरिङ्गणलोलमनायासं परमायासम्।

मायाकल्पितनानाकारमनाकारं भुवनाकारं

क्ष्मामा नाथमनाथं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥1॥

मृत्स्नामत्सीहेति यशोदाताडनशैशवसंत्रासं

व्यादितवक्त्रालोकितलोकालोकचतुर्दशलोकालिम्।

लोकत्रयपुरमूलस्तम्भं लोकालोकमनालोकं

लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥2॥

त्रैविष्टपरिपुवीरघ्नं क्षितिभारघ्नं भवरोगघ्नं

कैवल्यं नवनीताहारमनाहारं भुवनाहारम्।

वैमल्यस्फुटचेतोवृत्तिविशेषाभासमनाभासं

शैवं केवलशान्तं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥3॥

गोपालं भुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालं

गोपीखेलनगोवर्धनधृतिलीलालालितगोपालम्।

गोभिर्निगदितगोविन्दस्फुटनामानं बहुनामानं

गोपीगोचरदूरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥4॥

गोपीमण्डलगोष्ठीभेदं भेदावस्थमभेदाभं

शश्वद्गोखुरनिर्धूतोद्धतधूलीधूसरसौभाग्यम्।

श्रद्धाभक्तिगृहीतानन्दमचिन्त्यं चिन्तितसद्भावं

चिन्तामणिमहिमानं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥5॥

स्नानव्याकुलयोषिद्वस्त्रमुपादायागमुपारूढं

व्यादित्सन्तीरथ दिग्वस्त्रा ह्युपदातुमुपाकर्षन्तम्।

निर्धूतद्वयशोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरन्तःस्थं

सत्तामात्रशरीरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥6॥

कान्तं कारणकारणमादिमनादिं कालमनाभासं

कालिन्दीगतकालियशिरसि मुहुर्नृत्यन्तं नृत्यन्तम्।

कालं कालकलातीतं कलिताशेषं कलिदोषघ्नं

कालत्रयगतिहेतुं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥7॥

वृन्दावनभुवि वृन्दारकगणवृन्दाराध्यं वन्देऽहं

कुन्दाभामलमन्दस्मेरसुधानन्दं सुहृदानन्दम्।

वन्द्याशेषमहामुनिमानसवन्द्यानन्दपदद्वन्द्वं

वन्द्याशेषगुणाब्धिं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्॥8॥

गोविन्दाष्टकमेतदधीते गोविन्दार्पितचेता यो

गोविन्दाच्युत माधवविष्णो गोकुलनायक कृष्णेति।

गोविन्दाङ्घ्रिसरोजध्यानसुधाजलधौतसमस्ताघो

गोविन्दं परमानन्दामृतमन्तःस्थं स समभ्येति॥9॥

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