Mon. Oct 13th, 2025

Lingashtakam | लिङ्गाष्टकम्

लिंगाष्टकम् (Lingashtakam) एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसमें भगवान शिव के प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की स्तुति की गयी है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों (अष्टक) में रचित है, जिसमें शिवलिंग की महिमा और संसार के कर्ता के रूप में उसका महत्व वर्णित है।

Lingashtakam

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं
निर्मलभासित शोभित लिङ्गम् ।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 1 ॥

देवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं
कामदहन करुणाकर लिङ्गम् ।
रावण दर्प विनाशन लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 2 ॥

सर्व सुगन्ध सुलेपित लिङ्गं
बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम् ।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 3 ॥

कनक महामणि भूषित लिङ्गं
फणिपति वेष्टित शोभित लिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 4 ॥

कुङ्कुम चन्दन लेपित लिङ्गं
पङ्कज हार सुशोभित लिङ्गम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 5 ॥

देवगणार्चित सेवित लिङ्गं
भावै-र्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 6 ॥

अष्टदलोपरिवेष्टित लिङ्गं
सर्वसमुद्भव कारण लिङ्गम् ।
अष्टदरिद्र विनाशन लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 7 ॥

सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं
सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम् ।
परात्परं (परमपदं) परमात्मक लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 8 ॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

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