परिचय:
हिंदू धर्म में धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी की स्तुति से संबंधित अनेक स्तोत्रों का वर्णन है, लेकिन कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) एक ऐसा स्तोत्र है जिसे स्वयं आदि शंकराचार्य जी ने रचा था। इसे न केवल आध्यात्मिक लाभ के लिए, बल्कि दैहिक, दैविक और भौतिक कठिनाइयों के निवारण हेतु भी अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) की रचना की कथा
जब आदि शंकराचार्य एक बालक थे, वे भिक्षा मांगने के लिए एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण स्त्री के घर पहुँचे। उस स्त्री के पास कुछ भी देने को नहीं था, लेकिन फिर भी उसने श्रद्धा से एक सूखा आँवला उन्हें भिक्षा में दे दिया। शंकराचार्य उसकी निःस्वार्थ भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने माँ लक्ष्मी से उस स्त्री पर कृपा बरसाने के लिए यह स्तोत्र रचा। कहते हैं, उसी क्षण स्वर्ण की वर्षा (कनकधारा) उस स्त्री के घर में होने लगी।
वन्दे वन्दारु मन्दारमिन्दिरानन्दकन्दलम् ।
अमन्दानन्दसन्दोह बन्धुरं सिन्धुराननम् ॥
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥ 1 ॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥ 2 ॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्-
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥ 3 ॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ 4 ॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तटिदङ्गनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥ 5 ॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ 6 ॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्थं
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥ 7 ॥
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्ट कमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥ 8 ॥
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा-
मस्मिन्न किञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥ 9 ॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥ 10 ॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥ 11 ॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥ 12 ॥
नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥ 13 ॥
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसिस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥ 14 ॥
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ 15 ॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरितोद्धरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्ये ॥ 16 ॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
सन्तनोति वचनाङ्गमानसैः
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥ 17 ॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥ 18 ॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट
स्वर्वाहिनी विमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिनाथ-गृहिणीम्-अमृताब्धिपुत्रीम् ॥ 19 ॥
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥ 20 ॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतर-भाग्य-भागिनो [भागिनह्]
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥ 21 ॥
सुवर्णधारास्तोत्रं यच्छङ्कराचार्य निर्मितम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत् ॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) का महत्व
- इस स्तोत्र से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
- आर्थिक तंगी, दरिद्रता और धन की रुकावटों को दूर करता है।
- मानसिक शांति, आत्मबल और विश्वास को बढ़ाता है।
- इसे श्रद्धा, नियम और शुद्धता से नित्य पाठ करने पर जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) का मूल भाव
कनकधारा स्तोत्र में कुल 21 श्लोक हैं, जो संस्कृत में रचित हैं। प्रत्येक श्लोक माँ लक्ष्मी के सौंदर्य, उनकी करूणा, उनकी कृपादृष्टि और उनकी व्यापकता का वर्णन करता है। इसमें माँ लक्ष्मी को “कमलासन”, “कमलनयन”, “श्रीपत्नी” आदि सुंदर उपाधियों से संबोधित किया गया है।
कब और कैसे करें पाठ?
- शुभ मुहूर्त: शुक्रवार को प्रातः काल या माँ लक्ष्मी के व्रत के दिन।
- स्थान: घर के मंदिर में या किसी शांत स्थान पर।
- विधि: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर, दीप प्रज्वलित कर माँ लक्ष्मी की मूर्ति/चित्र के सामने स्तोत्र का पाठ करें।
यदि समय कम हो तो केवल प्रथम श्लोक या अंतिम श्लोक को श्रद्धा से पढ़ा जाए तो भी फलदायी होता है।
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) के प्रभावों का अनुभव
कई भक्तों के अनुसार, नियमित पाठ से उन्होंने अपने जीवन में आर्थिक स्थिरता, कार्यसिद्धि, और आश्चर्यजनक रूप से नई संभावनाओं का उदय होते देखा है। यह स्तोत्र केवल धन की प्राप्ति नहीं, बल्कि संतुलित, शांत और संतोषजनक जीवन भी प्रदान करता है लिए मार्गदर्शक बनता है।
निष्कर्ष:
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) केवल एक स्तोत्र नहीं, अपितु माँ लक्ष्मी के प्रति भक्ति, समर्पण और विश्वास की अमूल्य अभिव्यक्ति है। इसका निरंतर और श्रद्धापूर्वक पाठ जीवन में चमत्कारी परिवर्तन लाता है।
इस स्तोत्र का अभ्यास न केवल आपको आर्थिक दृष्टि से समृद्ध करेगा, बल्कि आपको आध्यात्मिक ऊर्जा से भी भर देगा।
🔱 जय माँ लक्ष्मी 🔱
📿 नियमित पाठ करें, और लक्ष्मी कृपा पाएं।
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