सुदर्शन अष्टकम्सहस्रादित्यसङ्काशं सहस्रवदनं परम् ।
सहस्रदोस्सहस्रारं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥ 1 ॥
हसन्तं हारकेयूर मकुटाङ्गदभूषणैः ।
शोभनैर्भूषिततनुं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥ 2 ॥
स्राकारसहितं मन्त्रं वदनं शत्रुनिग्रहम् ।
सर्वरोगप्रशमनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥ 3 ॥
रणत्किङ्किणिजालेन राक्षसघ्नं महाद्भुतम् ।
व्युप्तकेशं विरूपाक्षं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥ 4 ॥
हुङ्कारभैरवं भीमं प्रणातार्तिहरं प्रभुम् ।
सर्वपापप्रशमनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥ 5 ॥
फट्कारास्तमनिर्देश्य दिव्यमन्त्रेणसंयुतम् ।
शिवं प्रसन्नवदनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥ 6 ॥
एतैष्षड्भिः स्तुतो देवः प्रसन्नः श्रीसुदर्शनः ।
रक्षां करोति सर्वात्मा सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ 7 ॥
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