Sri venkateswara stotram | श्री वेङ्कटेश्वर स्तोत्रम्

कमलाकुच चूचुक कुङ्कमतो
नियतारुणि तातुल नीलतनो ।
कमलायत लोचन लोकपते
विजयीभव वेङ्कट शैलपते ॥

सचतुर्मुख षण्मुख पञ्चमुख
प्रमुखा खिलदैवत मौलिमणे ।
शरणागत वत्सल सारनिधे
परिपालय मां वृष शैलपते ॥

अतिवेलतया तव दुर्विषहै
रनु वेलकृतै रपराधशतैः ।
भरितं त्वरितं वृष शैलपते
परया कृपया परिपाहि हरे ॥

अधि वेङ्कट शैल मुदारमते-
र्जनताभि मताधिक दानरतात् ।
परदेवतया गदितानिगमैः
कमलादयितान्न परङ्कलये ॥

कल वेणुर वावश गोपवधू
शत कोटि वृतात्स्मर कोटि समात् ।
प्रति पल्लविकाभि मतात्-सुखदात्
वसुदेव सुतान्न परङ्कलये ॥

अभिराम गुणाकर दाशरधे
जगदेक धनुर्थर धीरमते ।
रघुनायक राम रमेश विभो
वरदो भव देव दया जलधे ॥

अवनी तनया कमनीय करं
रजनीकर चारु मुखाम्बुरुहम् ।
रजनीचर राजत मोमि हिरं
महनीय महं रघुराममये ॥

सुमुखं सुहृदं सुलभं सुखदं
स्वनुजं च सुकायम मोघशरम् ।
अपहाय रघूद्वय मन्यमहं
न कथञ्चन कञ्चन जातुभजे ॥

विना वेङ्कटेशं न नाथो न नाथः
सदा वेङ्कटेशं स्मरामि स्मरामि ।
हरे वेङ्कटेश प्रसीद प्रसीद
प्रियं वेङ्कटॆश प्रयच्छ प्रयच्छ ॥

अहं दूरदस्ते पदां भोजयुग्म
प्रणामेच्छया गत्य सेवां करोमि ।
सकृत्सेवया नित्य सेवाफलं त्वं
प्रयच्छ पयच्छ प्रभो वेङ्कटेश ॥

अज्ञानिना मया दोषा न शेषान्विहितान् हरे ।
क्षमस्व त्वं क्षमस्व त्वं शेषशैल शिखामणे ॥

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